रायपुर- हाल ही में सोशल मीडिया में बव्या हेल्थ सर्विसेज प्रा. लि. में कार्यरत रीजनल मैनेजर हुमेश जायसवाल पर रिश्वतखोरी के गंभीर आरोप लगाए गए, जो अब गलत जानकारी और एकतरफा बयानबाजी पर आधारित प्रतीत हो रहे हैं। वास्तविकता इससे एकदम विपरीत है, जिसमें पूरी भर्ती प्रक्रिया निर्धारित नियमों, शैक्षणिक मानकों और ऑपरेशन हेड की अनुमति से की गई थी।

क्या है पूरा मामला?

MCB जिले में लैब तकनीशियन, फार्मासिस्ट और स्टाफ नर्स के पदों हेतु भर्ती प्रक्रिया 22 मार्च 2025 को ऑन कॉल इंटरव्यू के माध्यम से आयोजित की गई थी। तीनों अभ्यर्थियों—दीपा खलखो, कोमल और इंदुमती—को रायपुर बुलाया गया था, लेकिन निजी कारणों से अनुपस्थित रहने पर ऑनलाइन इंटरव्यू लिया गया। इस इंटरव्यू में तीनों अभ्यर्थी साधारण प्रश्नों के उत्तर देने में भी असमर्थ रहीं।

फर्जी प्रमाण पत्र और अयोग्यता बनी असली वजह

रीजनल मैनेजर हुमेश जायसवाल द्वारा दिए गए जवाब के अनुसार दीपा खलखो का DMLT प्रमाण पत्र न तो छत्तीसगढ़ पैरामेडिकल काउंसिल से मान्यता प्राप्त था और न ही संस्था का नाम वैध था। QR कोड स्कैन करने पर DMLT की बजाय CMLT निकला और कोर्स अवधि भी एक वर्ष पाई गई, जोकि मानकों के अनुरूप नहीं है।

फार्मासिस्ट कोमल के पास केवल D. Pharma की डिग्री थी, जबकि कंपनी के फेस 2 और फेस 3 के लिए B. Pharma अनिवार्य है। वहीं इंदुमती बिना सूचना के कार्यरत थीं और वर्तमान स्टाफ के त्यागपत्र न देने के चलते उनकी नियुक्ति प्रक्रिया रोकी गई थी।

झूठे आरोपों का उद्देश्य संस्था की छवि धूमिल करना


11 अप्रैल को इन तीनों अभ्यर्थियों द्वारा हेल्थ मिनिस्टर को शिकायत दी गई, जिसमें रिश्वत मांगने के आरोप लगाए गए। लेकिन जब दस्तावेजों की गहन जांच की गई, तो हकीकत सामने आई कि ये आरोप निराधार हैं और केवल भावनात्मक दबाव बनाकर गलत तरीके से जॉइनिंग लेटर प्राप्त करने का प्रयास था।

हुमेश जायसवाल ने खुद किया दस्तावेज सत्यापन


15 अप्रैल को हुमेश जायसवाल स्वयं छत्तीसगढ़ पैरामेडिकल काउंसिल कार्यालय पहुंचे और दीपा खलखो के दस्तावेजों की जांच कराई, जहां स्पष्ट हुआ कि प्रमाण पत्र वैध नहीं है। उन्होंने विधिवत पत्राचार कर दस्तावेज सत्यापन की प्रक्रिया भी शुरू कर दी है।

कंपनी का रुख स्पष्ट बव्या हेल्थ सर्विसेज प्रा. लि. के संचालन की प्रक्रिया हमेशा से पारदर्शिता और योग्यता आधारित रही है। बिना उपयुक्त डिग्री और प्रमाण पत्रों के कोई भी नियुक्ति नहीं की जाती। ऐसे में एकतरफा मीडिया रिपोर्टिंग और भावनात्मक आरोप संस्था के नाम और ईमानदार अधिकारियों की छवि को नुकसान पहुंचाने की कोशिश है।

इस पूरे प्रकरण में रीजनल मैनेजर हुमेश जायसवाल का रुख न केवल व्यावसायिक रहा, बल्कि उन्होंने तथ्यों और दस्तावेजों के माध्यम से अपनी सच्चाई को भी प्रस्तुत किया। यह मामला उन लोगों के लिए भी एक चेतावनी है जो गलत तरीके से सरकारी या निजी संस्थानों को दबाव में लाकर लाभ लेना चाहते हैं।

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